Stories

Saturday, 13 October 2018

"दोहरे मानक !"










पैसे से कुछ नहीं होता...
ऐसा हरदम कहते हैं,
और ख़ुद आलीशान मकानों में रहते हैं ! 


बाक़ी दुनियावी दुखों का...
रोना ज़रूर रोते हैं,
पर रात को मखमली गद्दों पर सोते हैं !


दिखावाबाज़ी न करने का...
दम तो भरते हैं,
अपनी शादियां लेकिन आस्मानों में करते हैं !


फ़िज़ूलखर्ची रोकने की...
बात भी चलाते हैं,
हर रात मगर ख़ुद ये दिवाली मनाते हैं !


हर सरकारी चीज़ पर...
उँगली ख़ूब उठाते हैं,
और उसी सरकारी कुर्सी पर मरे जाते हैं !


भूखे-नंगे ग़रीब इन को...  
नज़र नहीं आते हैं,
हाँ, पत्थर पर पैसा-सोना ख़ूब चढ़ाते हैं !













मेरा देश, मेरा भारत महान...
का नारा लगाते हैं,
भ्रमण के लिए हमेशा विदेश ही जाते हैं !


अपने से कुछ हो न हो...
बस नुक्स निकालते हैं,
दूसरों पर ये सरे-आम स्याही उछालते हैं !


विश्व भर में मांस का...
निर्यात करवाते हैं,
निर्दोष को दोषी बता कर ज़िंदा जलवाते हैं !


हर बात में राजनीति के...
रंग बराबर भरते हैं,
कुछ अपने पुराने पुरूस्कार तक वापस करते हैं !


अपने यहाँ बेचारा ग़रीब...
दाल (-रोटी) को तरसता है,
और इनका अनुग्रह पड़ोसी देशों पर बरसता है !


खाया पचाने के लिए...
ये सैर करते हैं,
जबकि बहुत से लाचार यहाँ भूख से मरते हैं !
     

नशा-मुक्ति के विषय पर...
जब गोष्ठी होती है,
हाथ में सिगार मेज़ पर विदेशी बोतल होती है !


वातानुकूलित परिवेश में...
सारा कारोबार होता है,
बढ़ते विश्वव्यापी तापक्रम पर विचार होता है ! 


https://maatribhasha.com/yugmanch_read_poem.php?poem_id=YUGM100943

1 comment: