ख़ुद इश्क़ का फ़साना था
तेरी आँखों का दीवाना था !
जिसकी सुबह तू...शाम तू
हयात का दूसरा नाम तू !
टूट कर जिसने तुझे चाहा
हर अदा को तेरी सराहा…
इबादतों में लिया तेरा नाम,
ओ बुत-परस्ती का इलज़ाम
!
सिर्फ तेरी ही थी एक चाह
तू ही बस जुस्तजू-ए-हमराह…
हर सोच में...हर एक बात
में,
तू बसी थी जिसकी ज़ात में..
जिसके ज़ेहन में थी तू नक़्श
मर गया कहीं कल वो शख़्स,
मर गया कल वो ही शख़्स !!
- मोहनजीत -
No comments:
Post a Comment