“फ़ितरत पे सवाल…”
मुरव्वत से पेश आऊँगा ताकि कोई सवाल ना
हो...
मिल रहें हैं जो इख़्लास से, दुश्मनों की
चाल ना हो !
बे-शक चल रही हो वहाँ मेरे ही क़त्ल की साज़िश,
कोई मोहब्बत से बुलाए, न जाने की मजाल ना
हो !
एतबार अगर दुश्वारियों का बाइस बनता है
तो बने..
वो ज़िन्दगी क्या जीना जिसमें कोई कमाल ना
हो !
जान की परवाह किसे है, बस रिश्ते दिल के
बने रहें,
किसी पर भी भरोसा न रहे इतना बुरा हाल ना
हो !
बाक़ी सब कुछ हासिल है, एक तमन्ना अभी बची
है,
मेरे बाद भी मेरी फ़ितरत
पे कभी कोई सवाल ना हो !
***
मुरव्वत: प्यार; इख़्लास: शिष्टाचार, प्रेम; साज़िश: षड्यंत्र;
मजाल: हिम्मत;
एतबार: भरोसा; दुश्वारी: मुश्किल; बाइस: कारण; फ़ितरत:
आदत, स्वभाव
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