Stories

Wednesday, 31 October 2018

परछाई...








परछाई सी दिखती है

कहीं यह क़ज़ा ना हो… !

मेरे परवरदिगार की

कोई नयी रज़ा ना हो !!






Tuesday, 30 October 2018

कश्मकश!








ज़ीस्त की कश्मकश से कुछ राहत है…
और दिल को ज़रा सुकून है इन दिनों !

किसी और ज़ख्म की फिर जुस्तजू है…
नया इश्क़ एक नया जुनून है इन दिनों !

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ज़ीस्त: ज़िन्दगी; कश्मकश: संघर्ष; सुकून: चैन; जुस्तजू: तलाश; जुनून: उन्माद

Monday, 29 October 2018

होश...









उसकी फिर कुछ ख़बर रही..
ना अपना ही कोई होश रहा !

बे-हिसाब पिला दी साक़ी ने..
किसको किसका होश रहा !


Saturday, 27 October 2018

“फ़ितरत पे सवाल…”


“फ़ितरत पे सवाल…”

मुरव्वत से पेश आऊँगा ताकि कोई सवाल ना हो...
मिल रहें हैं जो इख़्लास से, दुश्मनों की चाल ना हो !

बे-शक चल रही हो वहाँ मेरे ही क़त्ल की साज़िश,
कोई मोहब्बत से बुलाए, न जाने की मजाल ना हो !

एतबार अगर दुश्वारियों का बाइस बनता है तो बने..
वो ज़िन्दगी क्या जीना जिसमें कोई कमाल ना हो !

जान की परवाह किसे है, बस रिश्ते दिल के बने रहें,
किसी पर भी भरोसा न रहे इतना बुरा हाल ना हो !

बाक़ी सब कुछ हासिल है, एक तमन्ना अभी बची है,
मेरे बाद भी मेरी फ़ितरत पे कभी कोई सवाल ना हो !


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मुरव्वत: प्यार; इख़्लास: शिष्टाचार, प्रेम; साज़िश: षड्यंत्र; मजाल: हिम्मत;
एतबार: भरोसा; दुश्वारी: मुश्किल; बाइस: कारण; फ़ितरत: आदत, स्वभाव  


Friday, 26 October 2018

जज़्बा-ए-इबादत








कोशिशें करले लाख समझ ना फिर भी पायेगा
चूँकि उसका रुतबा, उसका जल्वा ला-सानी है !

जज़्बा-ए-इबादत हो तो पत्थर भी रब लगता है
मान लो तो आब-ए-हयात वरना फ़क़त पानी है !!



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रुतबा: प्रतिष्ठा, ओहदा; ला-सानी: बेमिसाल, अतुल्य; जज़्बा-ए-इबादत: श्रद्धा-भाव, पूजा की भावना; 
आब-ए-हयात: अमृत; महज़: सिर्फ़

Thursday, 25 October 2018

उलझनें...






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तेरे आने की ख़ुशी है ना ना आने का ग़म...
किसी ख़ुशी में ख़ुशी ना किसी ग़म में ग़म !

कुछ इस क़दर बढ़ चली हैं उलझनें अपनी
किसी ख़ौफ़ से ख़ौफ़ज़दा होते नहीं हैं हम !



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Wednesday, 24 October 2018

रंज-ओ-मसाइब








आना-जाना अगर फ़ितरत है हर शै की यहाँ
क्यों दुखों को जाते, ना खुशियों को आते देखा

रंज-ओ-मसाइब से बिलखती इस दुनिया में...
चंद दीवानों को मैंने बे-वजह मुस्कुराते देखा !!



रंज-ओ-मसाइब: दुःख-दर्द




Monday, 22 October 2018

लुत्फ़े-मज़ीद









लुत्फ़े-मज़ीद का पता नहीं, नाकामियां और सर लेते !




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लुत्फ़-ए-मज़ीद: और अधिक आनंद

Saturday, 20 October 2018

“अगला दरवाज़ा” - एक लघुकथा





"के बात सै भाई? पिछला दरवज्जा ना दिखै?"
ड्राईवर से डांट खाकर हरीश चुपचाप नीचे उतर कर पिछले दरवाज़े की तरफ़ लपका, लेकिन उसके चढ़ पाने से पहले ही बस गति पकड़ चुकी थी I

डीo टीo सीo की बसों में सफ़र करना भी कोई मामूली बात नहींI अब उसी भीड़ भरे स्टैंड पर खड़ा वह किसी दूसरी बस का इंतज़ार कर रहा था I अपनी उम्र का लगभग एक तिहाई हिस्सा उसने बसों की इंतज़ार में, या उनके अन्दर, गुज़ार दिया था I अगली किसी ख़ाली बस की उम्मीद में वह अक्सर बसों को छोड़ता रहता... मगर दिल्ली में ख़ाली बस, मुंबई में ख़ाली मकान की तरह, नसीब से ही मिलती है! हाँ, अगले दरवाज़े से अगर चढ़ पाएं तो बात कुछ और है...


आख़िर घड़ी पर एक नज़र डाल, अपने बॉस की डांट-डपट याद आते ही बेचारा हरीश किसी भीड़-भाड़ वाली बस के पीछे ही भागने लगता..... इसी तरह एक सुबह अगले दरवाज़े से उतार दिए जाने पर बस के पीछे भागते-भागते वह संतुलन खोकर गिर पड़ा I

पीछे से तेज़ी से आकर रूकती एक दूसरी बस ने ब्रेक लगने से पहले ही अपना 'काम' कर डाला...

भाग्यवश, हरीश की जान बच गई....

और अब वह बसों के अगले दरवाज़े से भी बिना रोक-टोक चढ़ सकता है - अपनी बैसाखियाँ टेकता हुआ!

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Friday, 19 October 2018

गिले क्यों







बिछड़ना ही था अगर
तो हम मिले क्यों
वाक़ई हैं मजबूर तो..
फिर ये गिले क्यों !

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Wednesday, 17 October 2018

साथ








साथ चलते भी तो आख़िर चलते कैसे

तुम्हारे ख़्वाब जुदा मेरी मंज़िल अलग...




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Tuesday, 16 October 2018

नाज़







बड़ा नाज़ था हमको अपने ज़ब्त पे कभी…
तेरे हिज्र का सदमा मगर हम सह ना सके !

रो कर दिल शायद कुछ हल्का हुआ होता…
अश्कों को ना जाने क्या हुआ बह ना सके !




ज़ब्त: नियंत्रण: हिज्र: जुदाई; अश्क़: आँसू




   

        

         
   
    
  
   

Monday, 15 October 2018

तवज्जो









 
   
     

वर्ना मेरी तवज्जो का हक़दार तू भी कहाँ कम था!

     
     
   
 





मरहला: झमेला; दर-हक़ीक़त: वास्तव में; तवज्जो: ध्यान; हक़दार: योग्य

Saturday, 13 October 2018

Stories

My Stories...

"दोहरे मानक !"










पैसे से कुछ नहीं होता...
ऐसा हरदम कहते हैं,
और ख़ुद आलीशान मकानों में रहते हैं ! 


बाक़ी दुनियावी दुखों का...
रोना ज़रूर रोते हैं,
पर रात को मखमली गद्दों पर सोते हैं !


दिखावाबाज़ी न करने का...
दम तो भरते हैं,
अपनी शादियां लेकिन आस्मानों में करते हैं !


फ़िज़ूलखर्ची रोकने की...
बात भी चलाते हैं,
हर रात मगर ख़ुद ये दिवाली मनाते हैं !


हर सरकारी चीज़ पर...
उँगली ख़ूब उठाते हैं,
और उसी सरकारी कुर्सी पर मरे जाते हैं !


भूखे-नंगे ग़रीब इन को...  
नज़र नहीं आते हैं,
हाँ, पत्थर पर पैसा-सोना ख़ूब चढ़ाते हैं !













मेरा देश, मेरा भारत महान...
का नारा लगाते हैं,
भ्रमण के लिए हमेशा विदेश ही जाते हैं !


अपने से कुछ हो न हो...
बस नुक्स निकालते हैं,
दूसरों पर ये सरे-आम स्याही उछालते हैं !


विश्व भर में मांस का...
निर्यात करवाते हैं,
निर्दोष को दोषी बता कर ज़िंदा जलवाते हैं !


हर बात में राजनीति के...
रंग बराबर भरते हैं,
कुछ अपने पुराने पुरूस्कार तक वापस करते हैं !


अपने यहाँ बेचारा ग़रीब...
दाल (-रोटी) को तरसता है,
और इनका अनुग्रह पड़ोसी देशों पर बरसता है !


खाया पचाने के लिए...
ये सैर करते हैं,
जबकि बहुत से लाचार यहाँ भूख से मरते हैं !
     

नशा-मुक्ति के विषय पर...
जब गोष्ठी होती है,
हाथ में सिगार मेज़ पर विदेशी बोतल होती है !


वातानुकूलित परिवेश में...
सारा कारोबार होता है,
बढ़ते विश्वव्यापी तापक्रम पर विचार होता है ! 


https://maatribhasha.com/yugmanch_read_poem.php?poem_id=YUGM100943

Friday, 12 October 2018

बहाना







तुम जुदा हो जाओ

ना ठौर ठिकाना मिले

मुझे भी शायरी का

एक और बहाना मिले !



     
     
   
 

Thursday, 11 October 2018

ज़िद







मेरी ज़िद बड़ी थी या तेरी अना बड़ी थी
कोई दीवार ज़रूर हमारे बीच खड़ी थी !

मैं चला भी आया तुमने रोका तक नहीं
ख़ुदा जाने वो कौन सी मनहूस घड़ी थी !







अना: अहं



     
     
   
 

Wednesday, 10 October 2018

क़ुर्बत







मौहब्बत थी जुनूँ था..
क़रीब आये थामे हाथ;.
क़ुर्बत मिटी टूटे रिश्ते
मुख़्तसर सा रहा साथ!




क़ुर्बत: नज़दीकी; मुख़्तसर; संक्षिप्त