ना पूछो क्यूँकर वक़्त कटा,
अजीब-ओ-ग़रीब रहा हाल हमारा..
पीछा ता-उम्र चला, हमने
मौत का किया, ज़िन्दगी ने हमारा !
बस किताब-ए-दर्द लिए फिरते
रहे, पढ़ने वाले की जुस्तुजू में..
पूछा हर एक ने कि कैसे हो,
सुना किसी ने नहीं हाल हमारा !
मोहनजीत
ᵠ ᵠ ᵠ ᵠ
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ᵠ ᵠ
ᵠ
Very well written!
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