एक शोर सा हर-सू बरपा है, कोई नजात दिखाई
देती नहीं
सूरत-ए-हाल यूँ है... मुझको अपनी सदा
सुनाई देती नहीं !
बेताबियाँ शायद मुक़द्दर है, भटकना गोया
तक़दीर मेरी
मंज़िल तो नज़र की ज़द में है, कोई राह
सुझाई देती नहीं !
जिस्म कुछ इतना नाज़ुक है, बेहाल-निढाल
हुआ जाता है
लहू से अगरचे शराबोर रहे...कभी रूह दुहाई देती नहीं !
मोहनजीत
मोहनजीत
हर-सू: हर तरफ़;
बरपा: होना; नजात: मुक्ति; सूरत-ए-हाल: वर्तमान स्थिति; सदा: आवाज़;
बेताबी: बेचैनी; गोया: जैसे; ज़द: पहुँच; अगरचे:
चाहे; शराबोर: भीगा हुआ; दुहाई: फ़रियाद करना
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