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Monday, 24 September 2018

एक शोर सा हर-सू बरपा है...




एक शोर सा हर-सू बरपा है, कोई नजात दिखाई देती नहीं
सूरत-ए-हाल यूँ है... मुझको अपनी सदा सुनाई देती नहीं !

बेताबियाँ शायद मुक़द्दर है, भटकना गोया तक़दीर मेरी
मंज़िल तो नज़र की ज़द में है, कोई राह सुझाई देती नहीं !

जिस्म कुछ इतना नाज़ुक है, बेहाल-निढाल हुआ जाता है
लहू से अगरचे शराबोर रहे...कभी रूह दुहाई देती नहीं !  

मोहनजीत 



हर-सू: हर तरफ़; बरपा: होना; नजात: मुक्ति; सूरत-ए-हाल: वर्तमान स्थिति; सदा: आवाज़;
बेताबी: बेचैनी; गोया: जैसे; ज़द: पहुँच; अगरचे: चाहे; शराबोर: भीगा हुआ; दुहाई: फ़रियाद करना

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