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Wednesday, 10 April 2019

“एक दोस्त की जान बची!”







     कॉलेज में हमारी एक तिकड़ी थी - मैं यानि अमित, अमन और मनीष I तीनों के घर एक दूसरे से तक़रीबन २० किलोमीटर की दूरी पर, एक दिल्ली के साउथ में, दूसरा वेस्ट में और मैं ईस्ट में I तीनों बिल्कुल अलग-अलग स्कूलों से निकल कर आये हुए…. लेकिन शुरू में एक बार जो कॉलेज में हमारी दोस्ती हुयी वो पच्चीस सालों से अभी तक क़ायम है; हालांकि अब पिछले बहुत अर्से से सब दिल्ली से बाहर हैं - अपने अपने काम-काज के सिलसिले में, मगर यह दूरी हमारे दिलों और दोस्ती में आज तक कोई दूरी पैदा नहीं कर पायी!
      
     आते सब अलग-अलग थे पर एक बार कॉलेज में पहुँच कर हम तीनों पूरा दिन हर क्लास में, लाइब्रेरी में, कैंटीन में, हर जगह, यहाँ तक कि टॉयलेट में भी एक साथ ही होते थे I ज़ाहिर है, कॉलेज बंक करने में भी हम अपनी दोस्ती पूरी निभाते थे...

     एक दिन मैं सबसे पहले कॉलेज पहुंचा, थोड़ी देर बाद मनीष आ गया, और फिर हम दोनों मिल कर अमन का इंतज़ार करने लगे I उस दिन का टाइम टेबल देखने पर पता चला कि लंच से पहले वाला जो इकलौता लेक्चर था, वो भी प्रोफेसर शर्मा के आज न आने की वजह से ख़ाली था… और लंच के बाद का एक और आसानी से छोड़ा जा सकता था, कौन सा कुम्भ का मेला था!
कैंटीन में बैठे न्यूज़ पेपर देखते हुए मनीष बोला, "यार चाणक्य पे एक नयी बांड मूवी लगी है!"
"कौन कर रहा है जेम्स बांड का रोल?"
"तेरा फेवरिट रॉजर मूर...क्या कहता है?
"आईडिया तो बढ़िया है, पर अमन का क्या करें?" मैंने कहा, "कहीं वो अपनी नयी सेटिंग के साथ तो नहीं घूम रहा आज?"
अमन की एक दूसरे कॉलेज की एक लड़की, नीलिमा, से अभी हाल ही में दोस्ती हुयी थी, और जब मौक़ा मिलता, वो घर वालों से छिप कर (और हमें भी बताये बिना!) अपनी नयी यामहा मोटर साइकिल पर उसको घुमाने निकल जाता था I  
"चल फ़ोन करके पूछते हैं साले को कहाँ मर गया है..." मनीष ने कहा I

     तब कोई मोबाइल फ़ोन नहीं होते थे, बाबा आदम के ज़माने के वो लैंडलाइन टेलीफोन (हमारे यहाँ तो अभी वो भी नहीं था; पड़ौस के मल्होत्रा साहब के नंबर को पीo पीo देकर काम चलता था) जिनको आज कल के बच्चे शायद किसी म्युज़ियम में ही देख पाएं! उंगली डाल कर चर्र-चर्र करते हुए नंबर घूमाना पड़ता था I उस डायल में ९ और ० इतनी दूर से घूमते हुए आते थे कि पूछिए मत!
"कहाँ से करना है?" मैंने पूछा I
"ऑफिस से कर लेते हैं, इमरजेंसी बता कर..."
"पागल है क्या, बाहर चलते हैं," मैंने कहा "वो क्लर्क गुप्ता हज़ार बातें पूछेगा!" 
"चल फिर, उठ!"
"सिक्का है ना?"
मेन गेट पर सिक्योरिटी केबिन के पास ही एक पीo सीo ओo बूथ हुआ करता था, जहां से सिक्का डाल कर फ़ोन किया जा सकता था I
"है, पर बात तू ही करेगा..." मनीष ने साफ़-साफ़ मुझे फसाते हुए कहा I
असल में अमन की मम्मी से हम बहुत डरते थे, वो पहले एक स्कूल-टीचर रह चुकी थीं और अब भी घर में सब की क्लास लेती रहती थीं, फिर वो चाहे अमन के पापा हों, अमन, या उसकी छोटी बहन अंकिता I इस क्लास और प्यार-भरी डांट-डपट से मैं और मनीष भी कभी बख़्शे नहीं जाते थे...
"चल यार, मैं ही कर लूंगा!" मैंने हिम्मत दिखाई I

     गेट पर पहुँच कर मैं टेलीफोन बूथ में दाख़िल हो गया...मनीष भी मेरे साथ ही बूथ में घुस कर खड़ा हो गया I उसको सब की गाड़ियों और फ़ोन के नंबर ज़बानी याद रहते थे!
मैंने रिसीवर उठा कर देखा, डायल टोन थी, "चल सिक्का निकाल और नंबर बोल I"
उस ने एक रुपये का सिक्का मेरे हवाले किया और नंबर बोलने लगा...वह एक-एक अंक बोलता था और मैं डायल करता जाता था...आख़िर दूसरी तरफ फ़ोन की घंटी बजी...
"क्या हुआ?" मनीष ने पूछा I
"बेल्ल जा रही है..." मैंने जवाब दिया I
एक-डेढ़ मिनट के बाद वहाँ से किसी के फ़ोन उठाते ही मैंने सिक्का खट की आवाज़ से मशीन में डाल दिया...
"हैल्लो..." अमन की मम्मी की ही आवाज़ थी I
"नमस्ते आंटी" मैंने अपनी आवाज़ में मिठास घोलते हुए कहा…
"कौन?"
"मैं हूँ आंटी, अमित...कैसी हैं आप?"
"अच्छा अमित! कैसा है रे तू?"
"सब ठीक है आंटी, आप सुनाइए..."
"मैं भी ठीक हूँ बेटा I आज कैसे याद किया आंटी को?"
"बस आंटी...ऐसे ही..."
"चल बोल"
"आंटी, अमन है?"
"अरे वो तो सुबह ही निकल गया था कॉलेज के लिए..."
"अच्छा?" मैंने हैरान होकर पूछा, और मनीष की तरफ देख कर आँख मारी!
"हाँ, क्यों? वह कॉलेज नहीं पहुंचा क्या?"
अगर मैं सच बता देता कि अब मुझे पता है वह कमीना कहाँ है तो अमन की तो उस दिन शामत पक्की थी... मैंने कुछ सोच कर कहा, "पता नहीं आंटी! मुझे लगा शायद घर पर हो..."
"तू कहाँ है, अमित?" उसकी मां की खोज-बीन शुरू हो चुकी थी I
"असल में मैं आज घर में ही हूँ, तबियत थोड़ी खराब है I" मैंने कुछ सोच कर तुरंत बात बनायी!
"ओह!" आंटी की ठंडी सांस मुझे रिसीवर में से भी सुनाई दी, "चल अपना ख़्याल रख, मौसम बदल रहा है आज-कल!"     

     हम दोनों बूथ से बाहर निकले और हंसते हुए फिर से कैंटीन की तरफ चल दिए!!


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