तेरी साँसों की महक़ आज तक मुझे तड़पाती है…
तेरे जिस्म की तपिश अब भी मुझे सुलगाती है
अपने क़दमों की आहट लगे कभी तुम्हारी सी…
और अपनी आवाज़ में से तेरी आवाज़ आती है
सिगरेट के धुँए में भी तेरा ही अक्स उभरता है….
हर धड़कन मेरे दिल की तेरे नग़्मे गुनगुनाती है
इक आह सी उठती है दिल के किसी कोने से…
तन्हाई में तेरी याद जब आ-आ कर सताती है
रातों को जब मैं जगकर तारे गिना करता हूँ…
हर तारे में मुझ को तेरी तस्वीर नज़र आती है
https://storymirror.com/read/poem/hindi/drvm5hke/phlaa-pyaar
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