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Saturday, 20 April 2019

"कश्मकश"



  कहीं ऐसा तो नहीं…

  आँधियों का ना होकर

  कुसूर बस हमारा ही हो

  जो यूँ ग़र्दे-राह की तरह

  हल्के-बेबस से हो कर

  उड़ा करते हैं ऐसे अक्सर

  जज़्बात की हर रौ में…?!




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