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Saturday, 23 February 2019

“एक अज्ञात प्रेयसी के नाम...”



उम्मीदें…
क्यों मैं करता हूँ
इतनी तुमसे ?!
यह जानते हुए भी कि…
तुम मुझे जानती भी नहीं !
इंतज़ार किया करता हूँ
तुम्हारा… नाहक़ (!)
क्योंकि वादा तो दूर की बात
तुमसे कभी ‘मिला’ ही नहीं !
हैराँ हूँ अपनी दीवानगी पे,
तुम्हें जो समझता हूँ
इस क़दर अपना
जागते हुए भी आँखों में
सजाए रहता हूँ…
तुम्हारा ही कोई सपना
क़सम तुम्हारी आँखों की
बला की ख़ूबसूरती की….
सोचा ना था कभी
ऐसा भी दौर आएगा
यूँ बारहा नाउम्मीद हो कर भी
यह दिल… तुम्ही को चाहेगा……





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