सबके भरने का दम भरता है मेरे
भी तो भर,
कुछ ज़ख़्म तकलीफ़ देते हैं, उनका
कुछ कर!
तेरे गुज़रने पर सुना है सब कुछ
भूल जाता है,
शायद वो सदमे भी जो दिल में बना
चुके घर!
बुरा बन कर तो बहुत राब्ता रख
लिया दोस्त,
किसी रोज़ अच्छा बन कर निकल आ
इधर!
यह क्या ज़िद है कि चला गया तो
आता नहीं,
कोई प्यार से बुलाए तो कभी पलट
आया कर!
हर ग़लत बात पर लोग तेरा ही नाम
लेते हैं,
क्यों इतने इल्ज़ाम लिए फिरता
है अपने सर?!
राब्ता: वास्ता,
संबंध
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