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Saturday, 2 March 2019

“शिक़ायत”



कोई सफ़ाई पर्याप्त नहीं
बहाने, दलीलें रहने दो...
अपनी किसी मजबूरी का
तुम आज वास्ता ना दो,
रोने से कुछ नहीं होगा-
तुम बस एक काम करो…


मेरे ख़त मेरे प्यार समेत
शहर के चौराहे पे टाँग दो.
ताकि कोई ना किसी को
ख़त लिखने का जुर्म करे;
और ना किसी को किसी से
भूले से भी फिर प्यार हो…!




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