प्रभु राम के साथ स्वेच्छा से बनवास गए
लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के बलिदान का कभी कहीं विशेष उल्लेख नहीं हुआ I ऐसा ही हाल
हम फौजियों की पत्नियों का है - जिनको अक्सर एक पीड़ादायक अकेलापन झेलना पड़ता है...
कश्मीर
में अपनी पोस्टिंग के दौरान आतंकवादियों के ख़िलाफ़ एक सफल ऑपरेशन के बाद धर्मेश को जब
शौर्य चक्र प्रदान किया गया तो गौरवान्वित होने के साथ-साथ सैनिकों के लिए मेरे दिल
में सम्मान और अधिक बढ़ गया I
“सुनो जी, आप को यह क्या ज़िद है कि बेटे को फौजी ही बनाना है?”
मेरे पति, धर्मेश वर्मा, आर्मी में एक सिपाही भर्ती होकर, अपनी योग्यता
और लगन से हवलदार की पोस्ट पर पहुँचे थे I वैसे सेना का हवलदार, पुलिस के एक असिस्टेंट
सब इंस्पेक्टर के बराबर होता है I
“कोई छोटा-मोटा फौजी नहीं, संगीता, कमीशंड अफ़्सर! जो ओहदे में कम से कम
ब्रिगेडियर की पोस्ट तक जाए...” आँखों में सपने सजाये, सीना गर्व से फुलाये, हमेशा
यही कहते थे I
तबादलों
के बीच, शहर बदलते-बदलते कभी सैनिक स्कूल, कभी केंद्रीय विद्यालय - इस तरह शशांक
की बारहवीं ख़त्म होने को थी I अपने पिता से भी लम्बा निकला था हमारा बेटा I ६ फुट से
ऊँचा कद, गोरा रंग, सुतवां नाक, मुंह पर हल्की-हल्की दाढ़ी-मूंछ, गठीला कसरती बदन I
मुझे कई बार उसे अपनी ही नज़र से बचाने के लिए काला टीका लगाना पड़ता था!
सिर्फ़
पिता की इच्छा का मान ही नहीं, उसी माहौल में पल-बढ़ कर शशांक ख़ुद भी आर्मी में ही जाना
चाहता था!
बारहवीं के इम्तहान हो चुके थे I एक दिन शशांक अपने पिता से कहने लगा,
"पापा, मुझे भी एक मोटर साइकिल ले दो I"
"अभी नहीं बेटा," वे बोले, "थोड़ा इंतज़ार कर, तुझे मैं बुलेट
मोटर साइकिल लेकर दूंगा, मगर तेरी आर्मी ट्रेनिंग के बाद!"
"मैंने तैयारी तो कर ली है, पर अगर मैं ग्रेजुएशन के बाद सी0 डी0 एस0 ई0 (कंबाइंड डिफ़ेन्स सर्विसेज़ एग्ज़ाम) क्लियर कर के ज्वाइन कर लूँ तो?"
शशांक बोला I "वो भी तो एन0 डी0 ऐ0 (राष्ट्रीय रक्षा अकादमी) की प्रवेश परीक्षा की तरह यू0 पी0 एस0 सी0 (संघ लोक सेवा आयोग) के द्वारा ही आयोजित होती है I"
"नहीं बरख़ुर्दार, तुझे आर्मी में अभी, एन0 डी0 ऐ0 के माध्यम
से ही जाना चाहिए I"
"मगर क्यों?"
"देखो, अभी तुम सब बच्चे हो, सेना प्रशिक्षण में तुम्हें अपने हिसाब से ढालना
आसान है I और तुम्हारे लिए भी यह चार साल उनके तौर-तरीक़े और अनुशाशन जानने-समझने और
सीखने का बेहतरीन मौक़ा है I"
"और मेरी आगे की पढ़ाई, ग्रेजुएशन? उसका क्या?"
"वो तो इसी ट्रेनिंग के साथ-साथ हो जाएगी I तुम्हें बाक़ायदा जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री मिलेगी, भई!"
"जाना कहाँ होगा ट्रेनिंग के लिए?"
"पहले तीन साल राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खड़कवासला में I"
"यह कहाँ हुआ, पापा?"
"पुणे के पास, महाराष्ट्र में I"
"तो मुझे वहाँ अकेले रहना होगा?" शशांक ने ख़ास तौर पर मेरी तरफ
देखते हुए मासूमियत से पूछा I
"हाँ, सब कैडेट रहते हैं I" धर्मेश ने जवाब दिया I "और जब
भी छुट्टी मिले, हैदराबाद से पुणे है ही कितना दूर? ५५०-६०० किलोमीटर, रात को बस में
बैठो सुबह अपने घर!"
नायब सूबेदार बनने के बाद न सिर्फ़ कंधे पर तीन पट्टी की जगह एक स्वर्ण सितारा
और एक पट्टी आ गए थे, इनका तबादला भी अब सिकंदराबाद में हो चुका था I हम वहीँ छावनी
में एक सरकारी क्वार्टर में रहते थे I
"इसके साथ वहाँ लड़कियाँ भी होंगी क्या?" मैंने मुस्कुराते हुए
पूछा I
"जी नहीं, अकादमी में लड़कियों को दाख़िला नहीं मिलता I" सुन कर
थोड़ी राहत मिली…
"आपने कहा पहले तीन साल," अचानक शशांक कुछ सोच कर बोला, "और
आख़िरी साल?"
"एन0 डी0 ऐ0 दुनिया की पहली ऐसी अकादमी है जहाँ तीनों सेवाओं के लिए प्रशिक्षण मिलता
है - थल, जल और वायु सेना," धर्मेश ने शायद पूरी जानकारी जुटा रखी थी I
"एक कैडेट के झुकाव और उपयुक्तता के आधार पर निर्णय होता है कि उसको चौथे साल
की ट्रेनिंग के लिए कहाँ जाना है - भारतीय सैन्य अकादमी
(आई0 एम0 ऐ0, देहरादून, उत्तराखंड), भारतीय नौसेना अकादमी (आई0 एन0 ऐ0, कन्नूर,
केरल) या फिर एयर फ़ोर्से अकादमी (ऐ0 एफ़0 ऐ0, डुंडीगल, तेलंगाना)"
सारी जिज्ञासा शांत हो जाने तक शशांक प्रश्र
पूछता रहा और ये शांति से जवाब देते रहे…
फिर
एन0
डी0
ऐ0
की प्रवेश-परीक्षा संपन्न हुई, जिसके बाद सेवा चयन बोर्ड (एस0
एस0
बी0)
के कठिन और लम्बे साक्षात्कार, और अंत में सम्पूर्ण डॉक्टरी जांच I शशांक के कामयाब
होने की सबसे अधिक ख़ुशी उसके पिता को थी, सबको ख़ुद जा-जा कर मिठाई बांटते फिरे I
अपनी पढ़ाई और ट्रेनिंग के बीच में जब भी
छुट्टी मिलती, शशांक घर आ जाता था I हर बार मुझे लगता कि वो पिछली बार से ज़्यादा सांवला
हो गया था! मगर मुझे उसके घर आने पर इतनी ख़ुशी मिलती कि मैं बाक़ी सब कुछ अनदेखा कर
देती थी I उसको भी अपनी सख़्त फौज की ट्रेनिंग से थोड़ा आराम मिल जाता था I उन दिनों
मैं सिर्फ़ उसकी पसंद का खाना बनाया करती थी - वैसे खाने-पीने को लेकर उसके पहले वाले
नख़रे अब बचे भी नहीं थे I
आख़िर
तीन साल पूरे हुए; शशांक ने बहुत अच्छे से, दिल लगा कर यह समय निकाला था I
पासिंग आउट परेड का दिन भी आ पहुंचा I
समारोह उनके परिसर में खेतरपाल ग्राउण्ड में हो रहा था, और अन्य प्रफ़ुल्लित अभिभावकों
की तरह हम भी सादर आमंत्रित थे I सेना का कोई बड़ा अफ़्सर विशिष्ट अतिथि था, जिसके हाथों
शशांक को जब पूरी ट्रेनिंग में अपने बढ़िया प्रद्रर्शन के लिए रजत पदक मिला तो मेरी
तरह धर्मेश की सशक्त फौजी आँखों में भी ख़ुशी के आंसू छलक उठे I एक नर्म दिल तो आख़िर
इन फौजियों के सीने में भी धड़कता है!
अब
शशांक कुछ दिनों के लिए हमारे साथ ही रहने वाला था I फिर उसे कुछ समय बाद अपनी ट्रेनिंग
के आख़िरी चरण के लिए देहरादून जाना था I इस बार जब वह घर वापस आया तो हमारे साथ-साथ
एक नयी बुलेट मोटर साइकिल भी उसका इंतज़ार कर रही थी! शशांक की ख़ुशी का कोई ठिकाना न
रहा I सबसे पहले उसने दौड़ कर धर्मेश के पाँव छुए और गले लग गया I मेरा नंबर कुछ देर
बाद आया!
उस के बाद भारतीय सैन्य अकादमी (आई0
एम0
ऐ0)
की एक साल की ट्रेनिंग भी शशांक ने बहुत दिल लगा कर अपवादात्मक रूप से समाप्त कर ली
I
इस
बार पासिंग आउट परेड में मुख्य अतिथि सेना प्रमुख स्वयं थे I और हम एक बार फिर, सगर्व
समारोह में सम्मिलित थे, अपने बेटे की उपलब्धि पर फूले न समाते हुए I अब एक जेंटलमैन
कैडेट बाक़ायदा एक लेफ्टिनेंट बन चुका था!
कुछ दिनों बाद जब शशांक घर आया तो नायब
सूबेदार साहब अपने बैज की एक सितारे और एक पीले-लाल रंग की पट्टी की जगह उसका दो सितारों
वाला बैज देख कर गदगद हो उठे I पूरी छावनी में एक बार फिर मिठाई बांटी गयी...
दो
साल तेज़पुर की सफल पोस्टिंग के बाद लेफ्टिनेंट साहब जब इस बार छुट्टी पर घर लौटे तो
पदोन्नति के साथ कैप्टन बन चुके थे I कंधे पर लगे पट्टे पर एक और सितारे की बढ़ोतरी
हो चुकी थी I ज़ाहिर है, हर्षित पिता ने एक बार फिर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करते हुए
मिठाई बांटी!
इस ख़ुशी के मौक़े पर रात को दोनों बाप-बेटा रम की एक बोतल लेकर बैठ गए…
"बेटा शशांक," अचानक धर्मेश बोले, "अब तुम २४ साल के हो
चुके हो, शादी कर लो I"
"नहीं पापा," बेटे ने तुरंत प्रतिवाद किया, "अभी क्या जल्दी
है? पहले मेजर तो बन जाऊँ!”
"उसमें अभी वक़्त लगेगा, बेटा I और इस तरक्की के बाद से तुम्हारे लिए
अब अच्छे रिश्ते आने शुरू भी हो गए हैँ!"
फिर धर्मेश ने मेरी तरफ मुड़ कर देखा, "और तुम सुनो, संगीता...शशांक
के बेटे को मुझे अब एयर फ़ोर्से का
बड़ा अफ़्सर बनाना है, जो हवा में उड़ता, देश की सेवा करता, ब्रिगेडियर से भी ऊपर, एयर
मार्शल बन सके I"
मैंने मंद-मंद मुस्कुराते, खुली आँखों से सपना देखते हुए अपने पतिदेव से
कहा, "अरे पहले बेटे की शादी तो हो जाए!" फिर शशांक ने भी हंसी में मेरा
साथ दिया I
"वो तो अब हो ही जाएगी, पर तुम मुझे वचन दो कि मेरा यह सपना भी ज़रूर
पूरा करोगी I"
"अच्छा बाबा," मैंने कहा, "हम मिल कर पूरा करेंगे!"
“नहीं, माई बैटर हाफ़, मैं रहूँ या न रहूँ,” थोड़ी पीने के बाद इनकी वाणी
मुखर हो उठती थी, “तुम्हें मेरा यह सपना पूरा करना होगा I वचन दो…”
"चलो दिया वचन!"
शशांक
की नियुक्ति अब सीमा पर स्थित कुछ महत्वपूर्ण चौकियों पर होने लगी थी I
इस
बीच एक दिन धर्मेश को अचानक बहुत तेज़ बुख़ार हुआ I आर्मी अस्पताल में कुशल डाक्टरों
की मौजूदगी और लाख कोशिशों के बावजूद रोग का ठीक से निदान हो पाने से पहले ही वे चल
बसे…
शशांक
पहले ही घर से दूर था I अब इनके गुज़र जाने के बाद मेरे लिए अकेले रहना बहुत मुश्किल
हो गया था I अकेला घर काटने को दौड़ता था! बस कभी- कभी बीच में शशांक आ जाता था I एक
साल तक तो मैंने शादी की बात तक नहीं की, उसके बाद मैंने जब भी बात छेड़ी, शशांक मुझे
थोड़ा और रुकने को कह कर टाल देता…
और
आज एक बार फिर से मैं एक परेड में शामिल हूँ… इस बार जगह है - इंडिया गेट, नयी दिल्ली!
अपने
बड़े भाई, रामपाल सिंह, के साथ मैं २६ जनवरी की इस परेड में वी0
आई0
पी0
एरिया में बैठी हूँ I एक आयोजक मुझे आ कर समझाता है कि अब मुझे उठ कर धीरे-धीरे चलते
हुए मंच पर जाना है I मैंने धीमे क़दमों से चलना शुरू किया है और उधर उद्घोषक की आवाज़
गूँज रही है...
“कैप्टन वर्मा अपने चार जवानों के
साथ सीमांत की एक चौकी पर तैनात थे जब उन्हें पता चला कि आधी रात को शत्रु सेना के
कुछ जवान घुसपैठ के इरादे से उनकी चेक पोस्ट पर घात लगाए हैं I उन्होंने तुरंत अपने
अधिकारियों को वायरलेस पर स्थिति से अवगत कराया; आधुनिक हथियारों से लैस, सेना की एक
अतिरिक्त टुकड़ी फ़ौरन इस चौकी के लिए रवाना कर दी गयी I
उधर कैसी भी परिस्थिति से जूझने के
लिए तैयार कैप्टन और उनके जवान, दुश्मन की किसी भी कार्यवाही के लिए मुस्तैद थे I अतिरिक्त
बल पहुँचने में अभी समय था जब कि दूसरी तरफ़ से अचानक गोलीबारी शुरू हो गयी! अनुमान
लगाया गया कि दुश्मन के कम से कम बीस सैनिक थे I बिना घबराये, पूरी सूझ-बूझ और साहस
का परिचय देते कैप्टन वर्मा ने अपने बहादुर जवानों का मनोबल बढ़ाते हुए, मोर्चा संभाला
और डट कर मुक़ाबला करते हुए जवाबी हमला कर दिया I
कोई एक घंटे बाद जब सहायक टुकड़ी वहाँ
पहुँची, चौकी पर तिरंगा अभी भी लहरा रहा था! दुश्मन के कुल बाईस सैनिक मारे जा चुके
थे I हमारे चारों जवान ज़ख़्मी थे जिन्हें डाक्टरी इमदाद दे कर बचा लिया गया I लेकिन
‘सेवा परमो धर्म’ के सिद्धांत का पालन करते हुए कैप्टन वर्मा देश की सेवा में वीरगति
को प्राप्त हो चुके थे!
शशांक वर्मा को उनकी वीरता के लिए, मरणोपरांत, वीर चक्र से सम्मानित
किया जाता है I अब माननीय राष्ट्रपति जी कैप्टन वर्मा की माता, श्रीमती संगीता वर्मा
को यह पदक प्रदत्त करेंगे...”
बड़ी
अजीब मन:स्थिति है…
एक
तरफ़ एक विधवा माँ का अपने इकलौते बेटे को खोने का असीम दुःख, और दूसरी तरफ़ उसकी उपलब्धि
पर गर्व से स्वयंमेव ऊँचा होता सिर!
मुश्किल
से अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करते मैं मंच पर पहुँची हूँ, इस अफ़्सोस के साथ कि
धर्मेश को दिया अपना वचन पूरा न कर पाऊँगी…
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