Stories

Wednesday, 10 October 2018

क़ुर्बत







मौहब्बत थी जुनूँ था..
क़रीब आये थामे हाथ;.
क़ुर्बत मिटी टूटे रिश्ते
मुख़्तसर सा रहा साथ!




क़ुर्बत: नज़दीकी; मुख़्तसर; संक्षिप्त




     
     
   
 

Tuesday, 9 October 2018

ताल्लुक़







ना मैंने ही कभी पहल की, ना उसने हाथ बढ़ाया कभी

ज़िन्दगी से मेरा ताल्लुक़ कभी ख़ुशगवार ना रह सका !


*****

Monday, 8 October 2018

तन्हाई






अपने हिस्से का दर्द
ढोता यहाँ कौन नहीं ?
इस भीड़ में भी तन्हा
होता यहाँ कौन नहीं ?!



     
     
   
 

Saturday, 6 October 2018

“जुस्तजू-ए-हमराह”







ख़ुद इश्क़ का फ़साना था
तेरी आँखों का दीवाना था !
जिसकी सुबह तू...शाम तू
हयात का दूसरा नाम तू !
टूट कर जिसने तुझे चाहा
हर अदा को तेरी सराहा…
इबादतों में लिया तेरा नाम,
ओ बुत-परस्ती का इलज़ाम !
सिर्फ तेरी ही थी एक चाह
तू ही बस जुस्तजू-ए-हमराह…
हर सोच में...हर एक बात में,
तू बसी थी जिसकी ज़ात में..
जिसके ज़ेहन में थी तू नक़्श
मर गया कहीं कल वो शख़्स,
मर गया कल वो ही शख़्स !!

- मोहनजीत -




Friday, 5 October 2018

क़ज़ा का इंतज़ार...






तेरी उम्मीद है, क़ज़ा का इंतज़ार
ज़रा देखें तो पहले कौन आता है...




क़ज़ा: मौत



     
     
   
 

Thursday, 4 October 2018

“मृगतृष्णा”






रेगिस्तानों में भी कहीं…
कभी कोई भ्रम
पानी में बदलता है!? 

इस अंतहीन तलाश में…
बेचारा इंसान
आजीवन भटकता है!!




https://storymirror.com/read/poem/hindi/4bhjfxuf/mrgtrssnnaa

Wednesday, 3 October 2018

यह हम पर है मुनहसिर...





यह हम पर है मुनहसिर, याद रखना या भूल जाना...
गुज़रे पलों का क्या, उनकी तो आदत है याद आना !

माज़ी में मुब्तला रहे, या ख़ौफ़ज़दा मुस्तक़बिल से...
मौजूदा दौर की अहमियत को कम ही करके जाना !!





मुनहसिर: निर्भर; माज़ी: भूत काल; मुब्तला: फंसे, पड़े; ख़ौफ़ज़दा: भयभीत; मुस्तक़बिल: भविष्य; मौजूदा: वर्तमान