ऐ ख़ुदा तेरा शुक्रिया, बहुत दिया, जो दिया….
कमज़र्फ़ थे कभी ख़ुशी में तुझे ना याद किया!
ज़िन्दगी तो बस
सबकी यूँ ही गुज़रा करती है,
कुछ इसको दिया
और कुछ उससे ले लिया…!
चंद बातें कीं, कुछ क़िस्से भी सबसे कह डाले;
लबों को अपने कुछ मुद्दों पे लेकिन सी लिया!
जब मिली ख़ुशी,
बटोर ली अपने दामन में…
ऐसे ही ग़म का
हमने हंसते-हंसते जाम पिया!
क़िस्मत ने कभी रौशनी को आफ़्ताब बख़्शा,
और कभी तो हमें नसीब ना हुआ एक दिया…!
दुनिया ने तो
रंजिश ही निभाई मोहब्बत से,
हाँ, हमने मगर
प्यार से सब को प्यार किया!
मासूम थे पीठ में हम खंजर ताउम्र खाते रहे
मजाल है कभी पलट दोस्त पर वार किया...!
Mazaal hai kabhi palat dost par vaar kiya... Sums up the feelings and the crux of the poem... So well defining the human nature of forgetting the God in happiness and start praying to him the moment we are on distress. Excellent.
ReplyDeleteThanks a lot for all your appreciation!
DeleteThis is really what keeps one going!!
Excellent
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