दशहरे की छुट्टिओं
के बाद, अपने-अपने घर
से लौटे हम चार दोस्त
कॉलेज-हॉस्टल के
पास वाले ढाबे
पर जमे हुए थे। मार्विन
गोआ से आते हुए व्हिस्की
की एक बोतल उठा लाया
था और अब जाम के
साथ-साथ हमारी
गपशप चल रही थी! ढाबे
का मालिक कोई
ऐतराज़ नहीं करता
था - नियमित आना-जाना जो
था हमारा।
वैसे कॉलेज में
भले ही हम अभी ग्रेजुएशन
कर रहे हों,
शराब-सिगरेट के
मामले में ग्रेजुएट
हो चुके थे!
उस दिन सब
के पास अपनी-अपनी कोई
कहानी थी सुनाने
को...
"इस बार की
छुट्टी मेरे लिए
थोड़ी ख़ास थी,"
कुलबीर बोला, जिसकी
अब बारी थी।
"क्यूँ?
ऐसा क्या स्पेशल
था?" मैंने पूछा।
"मम्मी-डैडी की
शादी की सिल्वर
जुबली," उसने जवाब
दिया।
"मुबारक
हो यार!" सब
ने अपना-अपना
गिलास उठा कर बधाई दी।
"शुक्रिया!
बठिंडा में, हमारे
घर पर ही एक शानदार
पार्टी थी - सब रिश्तेदार, दोस्त जमा
थे उस ख़ास वेडिंग एनिवर्सरी
सेलिब्रेशन के लिए।"
"दारु?"
आकाश उत्तेजित हो
कर बोला, "दारु
भी थी क्या?"
"अरे यार, हम
पंजाबी हैं!" छाती
फुलाते हुए कुलबीर
ने जवाब दिया,
"हमारे यहाँ दारु
के बिना किसी
पार्टी को पार्टी
नहीं माना जाता..."
"लेकिन तेरा क्या?"
हंसी रुकने पर
आकाश बोला, "तू
तो पीता नहीं
होगा घर वालों
के सामने!"
"मतलब ही नहीं
है यार!" कुलबीर
ने बताया।
"फिर तेरे लिए
तो क्या पार्टी
हुई वो?!" मैंने
हमदर्दी ज़ाहिर की।
"पूरी बात तो
सुन लो तुम लोग पहले..."
"चल बोल!"
"खाना लगने
में अभी वक़्त
था; संगीत का
लुत्फ़ उठाते हुए
हम सब ड्राइंग
रूम में बैठे
बातें कर रहे थे जब
डैडी ने मेरे बड़े भाई
रणजीत को ड्रिंक्स
शुरू करने को कह। भाई
उठा और कमरे की एक
दीवार से लग कर बनी
विशाल बार-कैबिनेट
की तरफ़ चल दिया। मेरे
मदद के लिए पूछ पाने
से पहले ही रणजीत ने
किसी कुशल बारटेंडर
की तरह मोर्चा
संभाल लिया था।
वह हरेक से पहले उस
की पसंद पूछता
और उसी हिसाब
से फ़टाफ़ट ड्रिंक
बना कर पेश कर देता..."
"क्या कहने!" असगर जो अब तक
चुप बैठा था,
बोल ही पड़ा,
"यानि पूरी वैरायटी
थी…"
"बिल्कुल...
स्कॉच, वोडका, डार्क
रम और बियर वगैराह!" हम सब ललचाई नीयत
से सुन रहे थेा।
"पहले दो राउंड
तक तो किसी को सूझा
भी नहीं मुझसे
पूछने के बारे में," कुलबीर आँख
दबाते हुए बोला,
"मैं अभी बच्चा
जो ठहरा!"
"मतलब यह कि
बच्चे ने कोक से काम
चलाया!" इस बार
असगर ने सहानुभूति
जताई!
"कुछ देर
बाद, मैं भी रणजीत का
हाथ बटा रहा था," कुलबीर आगे
बोला, "अपने एक
अंकल के लिए जब मैं
नया पेग लेकर
पहुंचा तो उन्होंने
पूछ लिया - 'काका,
तेरा अप्पना ड्रिंक
कित्थे ऐ?'
'मैं नहीं पीता,
अंकल,' मैंने बड़ी
मासूमियत से जवाब
दिया।
'तुम तो कॉलेज
में हो न, बेटा? और
जल्दी ही ग्रेजुएट
होने वाले हो!'
'जी, लेकिन मैं
पीता नहीं!’ मैंने
इस बार ज़रा
ऊँची आवाज़ में
कहा ताकि दूसरे
भी सुन सकें।
'भाजी,' वे मुझे
छोड़, डैडी से मुख़ातिब हुए, 'मुंडा
जवान हो गया ऐ, उत्तों
इन्ना ख़ास मौक़ा!
तुसी कुलबीर नू
इक बियर वी नहीं पीण
दिओगे?'
'मैं केड़ा इहदा
हत्थ फड़िआ ऐ?’
डैडी ने मुस्कुराते
हुए कहा, ‘मुझे
कोई ऐतराज़ नहीं,
बशर्ते यह ख़ुद पीना चाहता
हो!'
"बस, इतना
सुनना था कि रणजीत ने
मेरी तरफ़ एक बियर की
बोतल बढ़ा दी।
हर कोई मेरी
ओर ऐसे देख रहा था
जैसे मैं कोई क़िला फ़तेह
करने जाने वाला
था! मैंने भी
आँखों में ख़ुशी
की चमक लिए बोतल को
थाम लिया। रणजीत
अभी बॉटल-ओपनर
ला ही रहा था कि
मैंने बोतल को मुंह में
डाला और तुरंत
अपने दांतों से
उसका ढक्कन खोल
दिया - टक्क करके,
उसने मुंह से आवाज़ निकालते
हुए कहा… जैसे
हम अक्सर यहाँ
करते हैं!"
"और इससे पहले
कि मैं कुछ समझ पाता,”
कुलबीर ने बात ख़त्म की,
“पार्टी में सबके
ठहाके गूँज रहे
थे..."
"अरे, तू क्या
बेवक़ूफ़ है?!" हम सब हैरानी से
एक सुर में बोले।
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